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कविता

चुटकुलों का

इसाक ‘अश्क’


मंच पर हँसते हुए
इन चुटकुलों का
क्या करें हम ?

स्वाभिमानी
धैवतों का -
बीच में ही टूट जाना
खौफ भरता है
ऋषभ का -
सप्तकों का रूठ जाना

वक्त की बहती नदी के
बुलबुलों का
क्या करें हम ?

हर समय
गंधार गाती -
बाँसुरी का मौन होना
दर्द देता है
बहुत -
कोलाहलों के बीच खोना

जिंदगी के बेमुरव्वत
सिलसिलों का
क्या करें हम ?


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